माडॅर्न दादू व माडॅर्न पोता फिल्म देखने सिनेमाघर गए। फिल्म के बीच
पोता - दादू, आप ज़मीन पर क्या कर रहे हो? अपनी सीट पर क्यों नहीं बैठे हुए?
दादू- श ऽ ऽ ऽ, चुप!
पोता- आपकी वजह से सब डिस्टर्ब (परेशान) हो रहे हैं। घूर-घूर कर यहीं देख रहे हैं। चलिए,सीट पर आइए।
दादू-अरे समझो, मैं कुछ ढूँढ़ रहा हूँ।
पोता-क्या?
दादू- टॉफी।
पोता- टॉफी!!!एक टॉफी के लिए इतना तमाशा! चलिए, आइए मैं आपको दूसरी दिला दूँगा।
दादू- नहीं, मुझे वही टॉफी चाहिए।
पोता-क्यों?
दादू-क्योंकि उसमें मेरे दाँत भी चिपके हुए हैं।
सार:साधकों,हम भी कई बार सेवा छोड़ देते हैं, छोटी-सी टॉफी समझ कर। यही सोचकर-’क्या हुआ यह सेवा नहीं कर पाए तो। दूसरी कर लेंगे। पर हम नहीं समझ पाते कि हमने केवल सेवा नहीं छोड़ी, बल्कि उसके साथ लगा बहुत कुछ छोड़ दिया-हमारा कल्याण, उत्थान, विकास! इसलिए किसी भी सेवा को छोड़ने कि भूल न करें। हमारा हित इसी में हैं!
भैयादूज पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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