Tuesday, December 7, 2010

सुईं बिन धागे के नहीं सिलती

…साईं बुल्लेशाह के मन में कौतुक करने की सूझी। दरअसल, वे दर्ज़ी को इबादत का सच्चा मर्म बतलाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने दर्ज़ी की गोद में बिखरा कपड़ा, जिसे वह पहले तुरप रहा था, उठा लिया। उस कपड़े में धागा पिरी एक सुईं भी थी जिसे उन्होंने निकाल दिया। फिर बड़ी एकाग्रता से उस बिन धागे की सुईं को कपड़े के आर-पार…आर-पार घुसाने लगे।

दर्ज़ी तपाक से बोला-’साईं ,कैसी बच्चों जैसी बात करते हो? बिना धागे के अकेली सुईं कैसे सिलेगी? पहले इसमें धागा तो डालो!’ अब साईं बुल्लेशाह के बोलने की बारी थी। वे भी उसी लय में झट बोले-’यही तो मैं भी तुम्हें बतलाना चाहता हूँ, मियाँ-जिचर नइश्क-मजाज़ी लागे, सुई सीवे न बिन धागे॥ जैसे एक सुईं बिना धागे के नहीं सिलती, वैसे ही इश्के-मजाज़ी (गुरु-भक्ति) के बिना इश्के-हकीकी( प्रभु-भक्ति) कभी नहीं मिल सकती। मुर्शिद का रहमोकरम(दया), इल्मो-ज्ञान(ब्रह्मज्ञान) जब खुदा की इबादत से जोड़ता है, तभी बात बनती है। कपड़े में खाली सुईं चलाना बेकार है...

1 comment:

  1. apki rachna bin siu bin dhaga..... me "Mursid&khuda words substituable hai yaa different cannotation liye hote hai?

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